निदा फ़ाज़ली ग़ज़ल्स

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घर से निकले हो तो सोचा है किधर जाओगे ।
हर तरफ तेज हवाएॅं हैं, बिखर जाओगे ।।

इतना आसां नही लफजों पर भरोसा करना ।
घर की दहलीज पुकारेगी, जिधर जाओगे ।।

शाम होते ही सिमट जाएगें सारे रास्ते ।
बहते दरिया से जहाॅं होगें, ठहर जाओगे ।।

हर नए शहर में कुछ रातें कडी होतीं हैं ।
छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे ।।

पहले हर चीज नजर आएगी बेमानी सी ।
और फिर अपनी ही नजरों से उतर जाओगे ।।

[/stextbox] [stextbox id=’custom’]अपना गम लेकर कहीं और न जाया जाए ।
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए ।।

जिन चिरागों को हवाओं का कोइ खौफ नही ।
उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाए ।।

बाग में जाने के भी आदाब हुआ करतें हैं ।
किसी तितली को ना फूलों से उडाया जाए ।।

खुदकुशी करने की हिम्मत नही होती सब मे ।
और कुछ दिन युहीं औरो को सताया जाए ।।

घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो युॅं करलें ।
किसी रोते हुए बच्चे को हसाॅंया जाए ।।[/stextbox]

 

 

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